सोमवार, 6 दिसंबर 2010

पूजाघर का वास्तु


पूजाघर का वास्तु पूजा का स्थान कहाँ हो

हमारे घर में पूजा का स्थान जरूर ही होता है। लेकिन यदि पूजा का स्थान उचित जगह पर हो तो हमारे मन में भी शांति रहेगी। भगवान की पूजा हम जरूर करते हैं पर घर में पूजास्थल कहाँ होना चाहिए इसकी सही जानकारी नहीं होने की वजह से हमें मनोवांछित फल की प्राप्ति नहीं हो पाती। आइए जानते हैं कि वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में पूजास्थल कहाँ होना चाहिए।

आजकल महानगरों में जगह की इतनी कमी है कि पूजा के लिए अलग से एक कमरा बनाना संभव नहीं हो पाता। पर आज भी जिसके मकान बड़े हैं वहाँ एक कमरे में अलग से पूजास्थल बना होता है। कई घरों में तो बाकायदा अलग से मंदिर बना होता है, जो सुंदर देव प्रतिमाओं से सुशोभित होता है। यह बात भी सच है कि पूजा जैसी भी हो वह फलदायक तभी होती है जब पूजा करने वाले के मन में भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा हो।

सही स्थान का चुनाव- कई बार प्रश्न उठता है कि कहीं पूजा स्थल गलत जगह पर तो नहीं बनाया गया? कहीं मूर्तियों या चित्रों का मुँह गलत या उल्टी दिशा की ओर तो नहीं है? हम ठीक दिशा की तरफ मुँह करके पूजा कर रहे हैं या नहीं?आपकी पूजा में जितनी भक्ति और समर्पण का भाव होगा भगवान आपसे उतना ही प्रसन्न होकर आपका भाग्योदय करेंगे।

नियम यही है कि घर में एक ही पूजास्थल होना चाहिए। घर में पूजास्थल एक शक्तिशाली ऊर्जा का स्त्रोत होता है। इसलिए यह स्त्रोत घर में जगह-जगह बिखरा हुआ नहीं होना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि एक ही घर में अलग-अलग कमरों में दो या तीन पूजास्थल नहीं होने चाहिए। संयुक्त परिवारों में ऐसा देखने को मिलता है कि एक ही परिवार में लोग अपने-अपने बेडरूम के पास ही पूजास्थल बना लेते हैं। पर वास्तुशास्त्र की दृष्टि से यह बिल्कुल गलत है। ऐसा करने से घर के सदस्य हमेशा मानसिक परेशानी से घिरे रहेंगे और उन्हें ठीक से नींद नहीं आएगी। जगह-जगह भगवान के चित्र और प्रतिमाएँ मंदिर में ठीक रहते हैं, घर में नहीं। संयुक्त परिवार में तो यह अत्यंत आवश्यक है कि पूजास्थल एक ही जगह स्थित हो, भले ही परिवार के सभी सदस्य अपनी सुविधानुसार एक साथ या अलग-अलग समय पर पूजा करें।

अगर आप नया मकान बनवाने की सोच रही हैं तो उसके उत्तर-पूर्व के कमरे यानी ईशान कोण में पूजास्थल रखना सर्वोत्तम रहेगा। ईशान कोण में मंदिर रखना और प्रतिमाओं का मुख पश्चिम की ओर करना ही उत्तम रहता है। ईशान कोण देवताओं के गुरु बृहस्पति और मोक्षकारक केतु की दिशा मानी गई है। ईशान कोण में स्वयं भगवान शिव विराजमान रहते हैं और उनका एक नाम ईशान भी है। ईशान कोण आध्यात्मिक कार्यों के लिए सबसे उत्तम और शक्तिशाली दिशा मानी गई है।

सभी की श्रद्धा हर देवी-देवता में हो यह आवश्यक नहीं, हरेक का अपना एक इष्टदेव होता है। वैसे तो भगवान के जिस स्वरूप की पूजा करने से ही आपको सब फल मिल जाएँगे, यह शास्त्रों का कथन है फिर भी अगर आप एक से अधिक देवी-देवताओं का पूजन करना चाहें तो अपने पूजास्थल के बीच में गणेश, ईशान में विष्णु या उनके अवतार राम या कृष्ण, अग्निकोण में शिव, नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम में सूर्य तथा वायुकोण यानी उत्तर-पश्चिम में देवी दुर्गा की स्थापना कीजिए। सबसे पहले सूर्य की और फिर क्रम से गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

कुछ महत्वपूर्ण बातें

आजकल भिन्न-भिन्न प्रकार की धातुओं से मंदिर बनाए जाते हैं लेकिन घर में शुभता की दृष्टि से मंदिर लकड़ी, पत्थर और संगमरमर का होना चाहिए।

मंदिर इमारती लकड़ियों के बने होने चाहिए जैसे चंदन, शाल, चीड़, शीशम, सागौन आदि। पर जंगली लकड़ी से परहेज करना चाहिए जैसे नीम की लकड़ी।

मंदिर, गुम्बदाकार या पिरामिडनुमा होना शुभ माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में ऐसा लिखा गया है कि मंदिर में तीन गणपति, तीन दुर्गा, दो शिवलिंग, दो शंख, दो शालिग्राम, दो चंद्रमा, दो सूरज, द्वारिका के दो गोमती चक्र एक साथ, एक जगह पर नहीं रखने चाहिए।

ग्रह वास्तु के अनुसार, घर में पूजा के लिए डेढ़ इंच से छोटी और बारह इंच से बड़ी मूर्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बारह इंच से बड़ी मूर्ति की पूजा मंदिरों में की जाती है। घर में पीतल, अष्ठधातु की भी बड़े आकार की मूर्ति नहीं होनी चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें