गुरुवार, 22 सितंबर 2011

अपना बेडरूम वास्तु के अनुसार सजायें

पति-पत्नी के रिश्‍तों पर बेडरूम का भी काफी प्रभाव होता है। जी हां आप मानें या नहीं, वास्तु के मुताबिक बेडरूम की साज सज्जा ही पति-पत्नी के बीच के रिश्तों की मुधरता तय करती है। चलिये बात अगर बेडरूम की आ ही गई है, तो उसकी साज सज्जा पर भी गौर कर ही लेते हैं। यहां हम आपको टिप्स देंगे वास्तु के नियमों के मुताबिक बेडरूम को कैसे सजाएं।

हम जब किसी अपार्टमेंट में फ्लैट खरीदते हैं, तो चाह कर भी वास्तु के सारे नियमों के मुताबिक नहीं चल पाते। क्योंकि बिल्डर अपने मुताबिक बिल्डिंग बनाते हैं, आपके नहीं। तो ऐसे में अगर आप उसी बने हुए रूम को अपने तरीके से सजाएं वो भी वास्तु के मुताबिक, तो आपके जीवन में खुशियां हमेशा बनी रहेंगी। यदि आपका बेडरूम अच्छा है, तो घर में मानसिक शांति बनी रहेगी और आपकी सेक्सुअल लाइफ भी बेहतरीन रहेगी।

प्रस्तुत हैं टिप्स वास्तु की-

1. बेडरूम किसी प्रकार की चर्चा व बहस करने के लिए नहीं होता। यह सिर्फ आराम करने व सोने और लाइफ पार्टनर के साथ मस्ती करने के लिए होता है। बेडरूम में प्‍यार के अलावा अन्‍य बातें नहीं करनी चाहिये।

2. बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और इसी कोने में बेड भी रखना चाहिये। यदि आपने अपना बेड कमरे के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखा तो आपको ठीक से नींद नहीं आयेगी,आप तनाव से घिरे रहेंगे, आपको गुस्सा जल्दी आयेगा और बेचैनी सी बनी रहेगी।

3. बेडरूम की बाहरी दीवारों पर टूट-फूट या दरार नहीं होनी चाहिये। इससे घर में परेशानियां आती हैं।

4. यह वो रूम होता है, जहां आप दिन भर के सात से 10 घंटे तक बिताते हैं, यानी इसके वास्तु का सीधा प्रभाव आपके जीवन पर पड़ता है।

5. मकान के मालिक अगर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित बेडरूम में सोते हैं, तो अस्थिरता बनी रहती है, लिहाजा इस दिशा में घर के मालिक का बेडरूम नहीं होना चाहिए। घर के अन्‍य सदस्यों का बेडरूम यहां हो सकता है।

5. घर के मालिक का बेड दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए, यदि किसी कारणवश नहीं है, तो दूसरा विकल्प दक्षिण या पश्चिम में हो सकता है।

6. बेड का सिरहाना दक्षिण की ओर होना चाहिये। इससे बेचैनी नहीं रहती है और रात में अच्‍छी नींद आती है उसका स्वास्थ्य अत्तम रहता है। उत्तर की तरफ सिर करके सोने से खराब सपने आते हैं और नींद अच्छी नहीं आती और स्वास्थ्य खराब रहता है। वहीं पूर्व की ओर सिर करने से ज्ञान बढ़ता है, जबकि पश्चिम की ओर सिर करके सोने से स्वास्थ्य खराब रहता है।

7. बेडरूम में कोई ऐसी तस्वीर मत लगायें, जो हिंसा दर्शा रही हो। बेडरूम की दीवार का रंग चटक नहीं होना चाहिये। साथ ही जिस तरफ बेड के सिरहाने वाली दीवार पर घड़ी, फोटो फ्रेम आदि नहीं लगायें, इससे सिर में दर्द बना रहता है। अच्छा होगा यदि आप बेड के ठीक सामने वाली दीवार पर कुछ मत लगायें। इससे मन की शांति बनी रहती है।

बुधवार, 1 जून 2011

रसोई घर

यह शास्त्र सम्मत तो है ही मगर मेरा स्व अनुभव है कि हर घर में किचन आग्नेय कोण में ही होना चाहिए |

चूल्हा आग्नेय में, प्लेटफॉर्म पूर्व व दक्षिण को घेरता हुआ होना चाहिए | वॉश बेसिन उत्तर में हो | भोजन बनाते समय मुख पूर्व की ओर हो, उत्तर व दक्षिण में कतई नहीं |

उत्तर को घेरता हुआ प्लेटफॉर्म बनाना या उत्तर में गैस का चूल्हा रखना घर को महत्वपूर्ण बनाता है | ऐसे घर में काम कभी समाप्त ही नहीं होते, भोजन की बरकत समाप्त हो जाती है | गृहस्वामिनी को मानसिक क्लेश हमेशा बना रहता है | पश्चिम में बना प्लेटफॉर्म घर में अशां‍ति देता है, भोजन का रस-तत्व निष्फल करता है और स्वास्थ्य हानि करता है | दोनों ही स्थितियों में घर का व्यय क्रमश: बढ़ता ही जाता है और घर की शांति भंग होती जाती है |

इस संबंध में एक और तथ्य अनुभव में आया है कि छोटे-मोटे उपाय करने के बाद भी कोई विशेष सुधार होता प्रतीत नहीं होता | शरीर स्वास्थ्य व मन की शांति का सीधा संबंध भोजन से है अत: यदि रसोईघर सही दिशा में नहीं है तो वह घर आपको कभी सुख समृद्धि नहीं दे सकता |

उपाय : रसोई घर की दिशा बदलना ही एकमात्र उपाय होता है | सावधानी के लिए आग्नेय में भोजन बनाकर बाद में उसे अन्य स्थान पर रखने से भी दोष नहीं लगता।

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

शयनकक्ष में वास्तु नियम

शयनकक्ष में वास्तु नियम

यद्यपि पति-पत्नी के मध्य बिगड़ते संबंधों की कई वजह होती हैं,लेकिन वास्तुदोष भी इसकी एक वजह हो सकती है। पति-पत्नी के सम्बन्धों का ज्ञान बैडरूम की साज सज्जा को देखकर कोई भी वास्तु शास्त्री आसानी से लगा सकता है। वास्तु दोषों के साथ-साथ नौग्रहों के कारण भी पति-पत्नी के सम्बन्धों में परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं।

बैडरूम के रंग और दिशाऐं पति-पत्नी के सम्बन्धों और भोग-विलास को समाप्त करने के साथ-साथ परिवारिक सुख-शान्ति को समाप्त कर सकते हैं। मनुष्य यदि भोग विलास के लिए घर से बाहर तलाश करता है तो भी शुक्र ग्रह अपने प्रभाव का असर कम देता है। आज प्रायः देखने में आ रहा है कि व्यक्ति अपने स्वार्थों कि पूर्ति के लिए घर से बाहर शय्या सुख प्राप्त करने का प्रयास करता है।

इस कमरे में दर्पण न लगाएं। यदि इस कमरे में ड्रेसिंग टेबल हो तो विशेष ध्यान दें कि सोते समय आपका प्रतिबिम्ब दर्पण में न आए। यदि ऐसा हो तो शीशे को ढक कर रखें। यदि टॉइलट इस कक्ष के साथ हो तो उसके द्वार को सदैव बंद रखें। पत्नी पति के बाईं ओर सोए। पलंग द्वार के एकदम सम्मुख नहीं होना चाहिए। बिस्तर, बीम के नीचे नहीं हो। यदि ऐसा करना संभव न हो, तो कम से कम यह ध्यान अवश्य रखें कि बीम बिस्तर की लंबाई की दिशा में हो, न कि चौड़ाई की दिशा में।

वैवाहिक संबंधों में सामंजस्य के लिए बीम के दोष के परिहार हेतु बीम से दो बांसुरियां लटका दें अन्यथा फॉल्स छत डलवाकर बीम को छिपा दें। जिन युवा कपल्स को गर्भधारण में कठिनाई आ रही हो, उन्हें विशेष ध्यान देना चाहिए कि उनका बिस्तर बीम के नीचे न हो।

अलमारी , टेबल अथवा कमरे का कोई नुकीला कोना बिस्तर की ओर भेदन न कर रहा हो। संतान इच्छुक कपल्स के लिए सुझाव है कि उत्तर में सिर और दक्षिण में पैर करके न सोएं।

नैऋत्य कोण क्षेत्र शक्ति का प्रतीक है, परंतु साथ ही प्यार , भाग्य , रोमैंस और पारिवारिक खुशियों को नियंत्रक भी है। पवन घंटियों को क्रिस्टल के साथ नैऋत्य कोण में लटकाने से आपस में प्यार और विश्चास बढ़ता है। अंतत: इस कक्ष में मंदिर अथवा पूजा स्थल न बनाएं।

ससुराल में रसोई या निवास के उत्तर-पूर्व अथार्त ईशान में आग जलती है । ऐसे लोगों के पुत्र-पुत्रवधु तनाव में, गृह-कलह से परेशान व परस्पर दम्पत्ति झगड़ते रहते हैं। इनके अतिरिक्त जिन परिवारों के गृह में सीढ़ियों के नीचे रसोई होगी उनकी लड़कियां एवं पुत्र वधुओं की जलकर मरने की सम्भावना बढ़ जाती है और सीढ़ियों के नीचे बाथरूम या शौचालय होगा उनके गृह में गृहक्लेश के कारण जहर खाकर आत्महत्या करने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। ऐसे बाथरूम, शौचालय या रसोई में फाल्स सीलिंग करा लेने से यह दोष दूर हो जाता है ।

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

आधुनिक युग में - वास्तु शास्त्र

आधुनिक युग में, आज वास्तु शास्त्र वैज्ञानिकता के आधार पर एक नया मोड ले चुका है, क्यों कि पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध नें मानव जाति को कुछ अधिक ही प्रभावित किया है, जिससे कि अपनी मूलभूत धरोहर प्राचीन ज्ञान को आज हम विज्ञान (साईंस) के नाम से संबोधित करने लगे हैं. किन्तु जब प्राचीन वास्तु ज्ञान का आज के विज्ञान नें अनुसंधान किया तो पाया कि कभी प्राचीन वास्तु कला के जो नियम निहित किए गए थे, वें निश्चित ही मानव जीवन की दृ्ष्टि से बेहद उपयोगी थे.

भारत भूमी के प्राचीन ऋषि तत्वज्ञानी थे और उनके द्वारा इस कला को तत्व ज्ञान से ही प्रतिपादित किया गया था. आज के युग में विज्ञान नें भी स्वीकार किया है कि सूर्य की महता का विशेष प्रतिपादन सत्य है, क्योंकि ये सिद्ध हो चुका है कि सूर्य महाप्राण जब शरीर क्षेत्र में अवतीर्ण होता है तो आरोग्य, आयुष्य, तेज, ओज, बल, उत्साह, स्फूर्ति, पुरूषार्थ और विभिन्न महानता मानव में परिणत होने लगती है. आज भी वैज्ञानिक मानते हैं कि सूर्य की अल्ट्रावायलेट रश्मियों में विटामिन डी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है, जिनके प्रभाव से मानव जीवों तथा पेड-पौधों में उर्जा का विकास होता है. इस प्रभाव का मानव के शारीरिक एवं मानसिक दृ्ष्टि से अनेक लाभ हैं.

मध्यांह एवं सूर्यास्त के समय उसकी किरणों में रेडियोधर्मिता अधिक होती है, जो मानव शरीर, उसके स्वास्थय पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं. अत: आज भी वास्तु विज्ञान में भवन निर्माण के तहत, पूर्व दिशा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. जिससे सूर्य की प्रात:कालीन किरणें भवन के अन्दर अधिक से अधिक मात्रा में प्रवेश कर सकें और उसमें रहने वाला मानव स्वास्थय तथा मानसिक दृष्टिकोण से उन्नत रहे.

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

वास्तुशास्त्र संबंधी सामान्य नियम

वास्तुशास्त्र संबंधी सामान्य नियम

आजकल वास्तुशास्त्र का बोलबाला है। एक सामान्य से घर को वास्तु के इतने जटिल नियमों में बाँध दिया जाता है कि जिन्हें पढ़कर मनुष्य न केवल भ्रमित हो जाता है वरन जिनके घर पूर्णत: वास्तु अनुसार नहीं होते, वे शंकाओं के घेरे में आ जाते हैं। ऐसे मनुष्य या तो अपना घर बदलना चाहते हैं या शंकित मन से घर में निवास करते हैं।वास्तु विज्ञान का स्पष्ट अर्थ है चारों दिशाओं से मिलने वाली ऊर्जा तरंगों का संतुलन...। यदि ये तरंगें संतुलित रूप से आपको प्राप्त हो रही हैं, तो घर में स्वास्थ्य व शांति बनी रहेगी। अत: ढेरों वर्जनाओं में बँधने के बजाय दिशाओं को संतुलित करें तो लाभ मिल सकता है। निम्न निर्देशों का ध्यान रखें-

किचन दक्षिण-पूर्व में, मास्टर बैडरूम दक्षिण-पश्चिम में, बच्चों का बैडरूम उत्तर-पश्चिम में और शौचालय आदि दक्षिण में हों।

पानी की निकासी उत्तर में हो, ईशान (उत्तर-पूर्व) खुला हो, दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारी सामान हो।

मुख्य दरवाजा अन्य दरवाजों से बड़ा और भारी हो।

खिड़कियाँ व दरवाजे सम संख्या में हों व पूर्व या उत्तर में खुलें।

तीन दरवाजे एक सीध में न हों, दरवाजे बंद करते या खोलते समय आवाज न हो।

पूजा के लिए ईशान कोण हो या भगवान का मुख ईशान में हो।

उत्तर या पूर्व में तुलसी का पौधा लगाएँ।

पूर्वजों के फोटो पूजाघर में न रखें, दक्षिण की दीवार पर लगाएँ।

शाम को घर में सांध्यदीप जलाएँ। आरती करें।

इष्टदेव का ध्यान और पूजन अवश्य करें।

भोजन के बाद जूठी थाली लेकर अधिक देर तक न बैठें। न ही जूठे बर्तन देर तक सिंक में रखें

अपनी आय का एक हिस्सा इष्टदेव के नाम पर अलग रखें। घर में हमेशा समृद्धि बनी रहेगी।

सुबह उठकर पूर्व दिशा की सारी खिडकियां खोल दें। उगते सूरज की किरणें सेहत के लिए बहुत लाभदायक होती हैं। इससे पूरे घर के बैक्टीरिया एवं विषाणु नष्ट हो जाते हैं।

दोपहर बाद सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से निकलने वाली ऊर्जा तरंगें सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह होती हैं। इनसे बचने के लिए सुबह ग्यारह बजे के बाद घर की दक्षिण दिशा स्थित खिडकियों और दरवाजों पर भारी पर्दे डाल कर रखें। क्योंकि ये किरणें त्वचा एवं कोशिकाओं को क्षति पहुंचाती हैं।

रात को सोते समय ध्यान दें कि आपका सिर कभी भी उत्तर एवं पैर दक्षिण दिशा में न हो अन्यथा सिरदर्द और अनिद्रा जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

गर्भवती स्त्रियों को दक्षिण-पश्चिम दिशा स्थित कमरे का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसी अवस्था में पूर्वोत्तर दिशा या ईशान कोण में बेडरूम नहीं रखना चाहिए। इसके कारण गर्भाशय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

नवजात शिशुओं के लिए घर के पूर्व एवं पूर्वोत्तर के कमरे सर्वश्रेष्ठ होते हैं। सोते समय बच्चे का सिर पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।

हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों को दक्षिण-पूर्व में बेडरूम नहीं बनाना चाहिए। यह दिशा अग्नि से प्रभावित होती है और यहां रहने से ब्लडप्रेशर बढ जाता है।

बेडरूम हमेशा खुला और हवादार होना चाहिए। ऐसा न होने पर व्यक्ति को मानसिक तनाव एवं नर्वस सिस्टम से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।

वास्तुशास्त्र की दृष्टि से दीवारों पर सीलन होना नकारात्मक स्थिति मानी जाती है। ऐसे स्थान पर लंबे समय तक रहने से श्वास एवं त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को हमेशा नैऋत्य कोण अर्थात दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित कमरे में रहना चाहिए। यहां रहने से उनका तन-मन स्वस्थ रहता है।

किचन में अपने कुकिंग रेंज अथवा गैस स्टोव को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि खाना बनाते वक्त आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। यदि खाना बनाते समय गृहिणी का मुख उत्तर दिशा में हो तो वह सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस एवं थायरॉइड से प्रभावित हो सकती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन बनाने से बचें। गृहिणी के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक प्रभाव पडता है। इसी तरह पश्चिम दिशा में मुख करके खाना बनाने से आंख, नाक, कान एवं गले से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।

यह ध्यान रखें कि रात को सोते हुए बेड के बिलकुल पास मोबाइल, स्टेवलाइजर, कंप्यूटर या टीवी आदि न हो। अन्यथा इनसे निकलने वाली विद्युत-चुंबकीय तरंगें मस्तिष्क, रक्त एवं हृदय संबंधी रोगों का कारण बन सकती हैं।

बेडरूम में पुरानी और बेकार वस्तुओं का संग्रह न करें। इससे वातावरण में नकारात्मकता आती है। साथ ही, ऐसे चीजों से टायफॉयड और मलेरिया जैसी बीमारियों के वायरस भी जन्म लेते हैं।

आंखों की दृष्टि मजबूत बनाने के लिए सुबह जल्दी उठकर, किसी खुले पार्क या हरे-भरे बाग बगीचे में टहलें। वहां मिलने वाला शुद्ध ऑक्सीजन शरीर की सभी ज्ञानेंद्रियों को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।

कोशिश होनी चाहिए कि भोजन करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रहे। इससे सेहत अच्छी बनी रहती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से पाचन तंत्र से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।

टीवी देखते हुए खाने की आदत ठीक नहीं है। ऐसा करने पर मन-मस्तिष्क भोजन पर केंद्रित न होकर माहौल के साथ भटकने लगता है। इससे शरीर को संतुलित मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता। साथ ही टीवी से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।

घर का मुख्य द्वार किस दिशा में हो, यह भी चिंता का विषय रहता है। अधिकतर दक्षिण व पश्चिम द्वार को शुभ नहीं माना जाता मगर यह तय करने के लिए जन्म पत्रिका का अध्ययन जरूरी है। कुछ राशियों के लोगों के लिए ये द्वार बेहद शुभ फल देते हैं विशेषकर जिन लोगों की कुंडली में शनि-मंगल शुभ कारक ग्रह होते हैं। अत: हर दृ‍ष्टि से विचार करके वास्तु संबंधी बातें तय की जाएँ तो घर में सर्वत्र सुख-शांति का वास रह सकता है।