शनिवार, 18 दिसंबर 2010

आधुनिक युग में - वास्तु शास्त्र

आधुनिक युग में, आज वास्तु शास्त्र वैज्ञानिकता के आधार पर एक नया मोड ले चुका है, क्यों कि पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध नें मानव जाति को कुछ अधिक ही प्रभावित किया है, जिससे कि अपनी मूलभूत धरोहर प्राचीन ज्ञान को आज हम विज्ञान (साईंस) के नाम से संबोधित करने लगे हैं. किन्तु जब प्राचीन वास्तु ज्ञान का आज के विज्ञान नें अनुसंधान किया तो पाया कि कभी प्राचीन वास्तु कला के जो नियम निहित किए गए थे, वें निश्चित ही मानव जीवन की दृ्ष्टि से बेहद उपयोगी थे.

भारत भूमी के प्राचीन ऋषि तत्वज्ञानी थे और उनके द्वारा इस कला को तत्व ज्ञान से ही प्रतिपादित किया गया था. आज के युग में विज्ञान नें भी स्वीकार किया है कि सूर्य की महता का विशेष प्रतिपादन सत्य है, क्योंकि ये सिद्ध हो चुका है कि सूर्य महाप्राण जब शरीर क्षेत्र में अवतीर्ण होता है तो आरोग्य, आयुष्य, तेज, ओज, बल, उत्साह, स्फूर्ति, पुरूषार्थ और विभिन्न महानता मानव में परिणत होने लगती है. आज भी वैज्ञानिक मानते हैं कि सूर्य की अल्ट्रावायलेट रश्मियों में विटामिन डी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है, जिनके प्रभाव से मानव जीवों तथा पेड-पौधों में उर्जा का विकास होता है. इस प्रभाव का मानव के शारीरिक एवं मानसिक दृ्ष्टि से अनेक लाभ हैं.

मध्यांह एवं सूर्यास्त के समय उसकी किरणों में रेडियोधर्मिता अधिक होती है, जो मानव शरीर, उसके स्वास्थय पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं. अत: आज भी वास्तु विज्ञान में भवन निर्माण के तहत, पूर्व दिशा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. जिससे सूर्य की प्रात:कालीन किरणें भवन के अन्दर अधिक से अधिक मात्रा में प्रवेश कर सकें और उसमें रहने वाला मानव स्वास्थय तथा मानसिक दृष्टिकोण से उन्नत रहे.

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

वास्तुशास्त्र संबंधी सामान्य नियम

वास्तुशास्त्र संबंधी सामान्य नियम

आजकल वास्तुशास्त्र का बोलबाला है। एक सामान्य से घर को वास्तु के इतने जटिल नियमों में बाँध दिया जाता है कि जिन्हें पढ़कर मनुष्य न केवल भ्रमित हो जाता है वरन जिनके घर पूर्णत: वास्तु अनुसार नहीं होते, वे शंकाओं के घेरे में आ जाते हैं। ऐसे मनुष्य या तो अपना घर बदलना चाहते हैं या शंकित मन से घर में निवास करते हैं।वास्तु विज्ञान का स्पष्ट अर्थ है चारों दिशाओं से मिलने वाली ऊर्जा तरंगों का संतुलन...। यदि ये तरंगें संतुलित रूप से आपको प्राप्त हो रही हैं, तो घर में स्वास्थ्य व शांति बनी रहेगी। अत: ढेरों वर्जनाओं में बँधने के बजाय दिशाओं को संतुलित करें तो लाभ मिल सकता है। निम्न निर्देशों का ध्यान रखें-

किचन दक्षिण-पूर्व में, मास्टर बैडरूम दक्षिण-पश्चिम में, बच्चों का बैडरूम उत्तर-पश्चिम में और शौचालय आदि दक्षिण में हों।

पानी की निकासी उत्तर में हो, ईशान (उत्तर-पूर्व) खुला हो, दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारी सामान हो।

मुख्य दरवाजा अन्य दरवाजों से बड़ा और भारी हो।

खिड़कियाँ व दरवाजे सम संख्या में हों व पूर्व या उत्तर में खुलें।

तीन दरवाजे एक सीध में न हों, दरवाजे बंद करते या खोलते समय आवाज न हो।

पूजा के लिए ईशान कोण हो या भगवान का मुख ईशान में हो।

उत्तर या पूर्व में तुलसी का पौधा लगाएँ।

पूर्वजों के फोटो पूजाघर में न रखें, दक्षिण की दीवार पर लगाएँ।

शाम को घर में सांध्यदीप जलाएँ। आरती करें।

इष्टदेव का ध्यान और पूजन अवश्य करें।

भोजन के बाद जूठी थाली लेकर अधिक देर तक न बैठें। न ही जूठे बर्तन देर तक सिंक में रखें

अपनी आय का एक हिस्सा इष्टदेव के नाम पर अलग रखें। घर में हमेशा समृद्धि बनी रहेगी।

सुबह उठकर पूर्व दिशा की सारी खिडकियां खोल दें। उगते सूरज की किरणें सेहत के लिए बहुत लाभदायक होती हैं। इससे पूरे घर के बैक्टीरिया एवं विषाणु नष्ट हो जाते हैं।

दोपहर बाद सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से निकलने वाली ऊर्जा तरंगें सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह होती हैं। इनसे बचने के लिए सुबह ग्यारह बजे के बाद घर की दक्षिण दिशा स्थित खिडकियों और दरवाजों पर भारी पर्दे डाल कर रखें। क्योंकि ये किरणें त्वचा एवं कोशिकाओं को क्षति पहुंचाती हैं।

रात को सोते समय ध्यान दें कि आपका सिर कभी भी उत्तर एवं पैर दक्षिण दिशा में न हो अन्यथा सिरदर्द और अनिद्रा जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

गर्भवती स्त्रियों को दक्षिण-पश्चिम दिशा स्थित कमरे का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसी अवस्था में पूर्वोत्तर दिशा या ईशान कोण में बेडरूम नहीं रखना चाहिए। इसके कारण गर्भाशय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

नवजात शिशुओं के लिए घर के पूर्व एवं पूर्वोत्तर के कमरे सर्वश्रेष्ठ होते हैं। सोते समय बच्चे का सिर पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।

हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों को दक्षिण-पूर्व में बेडरूम नहीं बनाना चाहिए। यह दिशा अग्नि से प्रभावित होती है और यहां रहने से ब्लडप्रेशर बढ जाता है।

बेडरूम हमेशा खुला और हवादार होना चाहिए। ऐसा न होने पर व्यक्ति को मानसिक तनाव एवं नर्वस सिस्टम से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।

वास्तुशास्त्र की दृष्टि से दीवारों पर सीलन होना नकारात्मक स्थिति मानी जाती है। ऐसे स्थान पर लंबे समय तक रहने से श्वास एवं त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को हमेशा नैऋत्य कोण अर्थात दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित कमरे में रहना चाहिए। यहां रहने से उनका तन-मन स्वस्थ रहता है।

किचन में अपने कुकिंग रेंज अथवा गैस स्टोव को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि खाना बनाते वक्त आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। यदि खाना बनाते समय गृहिणी का मुख उत्तर दिशा में हो तो वह सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस एवं थायरॉइड से प्रभावित हो सकती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन बनाने से बचें। गृहिणी के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक प्रभाव पडता है। इसी तरह पश्चिम दिशा में मुख करके खाना बनाने से आंख, नाक, कान एवं गले से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।

यह ध्यान रखें कि रात को सोते हुए बेड के बिलकुल पास मोबाइल, स्टेवलाइजर, कंप्यूटर या टीवी आदि न हो। अन्यथा इनसे निकलने वाली विद्युत-चुंबकीय तरंगें मस्तिष्क, रक्त एवं हृदय संबंधी रोगों का कारण बन सकती हैं।

बेडरूम में पुरानी और बेकार वस्तुओं का संग्रह न करें। इससे वातावरण में नकारात्मकता आती है। साथ ही, ऐसे चीजों से टायफॉयड और मलेरिया जैसी बीमारियों के वायरस भी जन्म लेते हैं।

आंखों की दृष्टि मजबूत बनाने के लिए सुबह जल्दी उठकर, किसी खुले पार्क या हरे-भरे बाग बगीचे में टहलें। वहां मिलने वाला शुद्ध ऑक्सीजन शरीर की सभी ज्ञानेंद्रियों को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।

कोशिश होनी चाहिए कि भोजन करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रहे। इससे सेहत अच्छी बनी रहती है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से पाचन तंत्र से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।

टीवी देखते हुए खाने की आदत ठीक नहीं है। ऐसा करने पर मन-मस्तिष्क भोजन पर केंद्रित न होकर माहौल के साथ भटकने लगता है। इससे शरीर को संतुलित मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता। साथ ही टीवी से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।

घर का मुख्य द्वार किस दिशा में हो, यह भी चिंता का विषय रहता है। अधिकतर दक्षिण व पश्चिम द्वार को शुभ नहीं माना जाता मगर यह तय करने के लिए जन्म पत्रिका का अध्ययन जरूरी है। कुछ राशियों के लोगों के लिए ये द्वार बेहद शुभ फल देते हैं विशेषकर जिन लोगों की कुंडली में शनि-मंगल शुभ कारक ग्रह होते हैं। अत: हर दृ‍ष्टि से विचार करके वास्तु संबंधी बातें तय की जाएँ तो घर में सर्वत्र सुख-शांति का वास रह सकता है।

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

पूजाघर का वास्तु


पूजाघर का वास्तु पूजा का स्थान कहाँ हो

हमारे घर में पूजा का स्थान जरूर ही होता है। लेकिन यदि पूजा का स्थान उचित जगह पर हो तो हमारे मन में भी शांति रहेगी। भगवान की पूजा हम जरूर करते हैं पर घर में पूजास्थल कहाँ होना चाहिए इसकी सही जानकारी नहीं होने की वजह से हमें मनोवांछित फल की प्राप्ति नहीं हो पाती। आइए जानते हैं कि वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में पूजास्थल कहाँ होना चाहिए।

आजकल महानगरों में जगह की इतनी कमी है कि पूजा के लिए अलग से एक कमरा बनाना संभव नहीं हो पाता। पर आज भी जिसके मकान बड़े हैं वहाँ एक कमरे में अलग से पूजास्थल बना होता है। कई घरों में तो बाकायदा अलग से मंदिर बना होता है, जो सुंदर देव प्रतिमाओं से सुशोभित होता है। यह बात भी सच है कि पूजा जैसी भी हो वह फलदायक तभी होती है जब पूजा करने वाले के मन में भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा हो।

सही स्थान का चुनाव- कई बार प्रश्न उठता है कि कहीं पूजा स्थल गलत जगह पर तो नहीं बनाया गया? कहीं मूर्तियों या चित्रों का मुँह गलत या उल्टी दिशा की ओर तो नहीं है? हम ठीक दिशा की तरफ मुँह करके पूजा कर रहे हैं या नहीं?आपकी पूजा में जितनी भक्ति और समर्पण का भाव होगा भगवान आपसे उतना ही प्रसन्न होकर आपका भाग्योदय करेंगे।

नियम यही है कि घर में एक ही पूजास्थल होना चाहिए। घर में पूजास्थल एक शक्तिशाली ऊर्जा का स्त्रोत होता है। इसलिए यह स्त्रोत घर में जगह-जगह बिखरा हुआ नहीं होना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि एक ही घर में अलग-अलग कमरों में दो या तीन पूजास्थल नहीं होने चाहिए। संयुक्त परिवारों में ऐसा देखने को मिलता है कि एक ही परिवार में लोग अपने-अपने बेडरूम के पास ही पूजास्थल बना लेते हैं। पर वास्तुशास्त्र की दृष्टि से यह बिल्कुल गलत है। ऐसा करने से घर के सदस्य हमेशा मानसिक परेशानी से घिरे रहेंगे और उन्हें ठीक से नींद नहीं आएगी। जगह-जगह भगवान के चित्र और प्रतिमाएँ मंदिर में ठीक रहते हैं, घर में नहीं। संयुक्त परिवार में तो यह अत्यंत आवश्यक है कि पूजास्थल एक ही जगह स्थित हो, भले ही परिवार के सभी सदस्य अपनी सुविधानुसार एक साथ या अलग-अलग समय पर पूजा करें।

अगर आप नया मकान बनवाने की सोच रही हैं तो उसके उत्तर-पूर्व के कमरे यानी ईशान कोण में पूजास्थल रखना सर्वोत्तम रहेगा। ईशान कोण में मंदिर रखना और प्रतिमाओं का मुख पश्चिम की ओर करना ही उत्तम रहता है। ईशान कोण देवताओं के गुरु बृहस्पति और मोक्षकारक केतु की दिशा मानी गई है। ईशान कोण में स्वयं भगवान शिव विराजमान रहते हैं और उनका एक नाम ईशान भी है। ईशान कोण आध्यात्मिक कार्यों के लिए सबसे उत्तम और शक्तिशाली दिशा मानी गई है।

सभी की श्रद्धा हर देवी-देवता में हो यह आवश्यक नहीं, हरेक का अपना एक इष्टदेव होता है। वैसे तो भगवान के जिस स्वरूप की पूजा करने से ही आपको सब फल मिल जाएँगे, यह शास्त्रों का कथन है फिर भी अगर आप एक से अधिक देवी-देवताओं का पूजन करना चाहें तो अपने पूजास्थल के बीच में गणेश, ईशान में विष्णु या उनके अवतार राम या कृष्ण, अग्निकोण में शिव, नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम में सूर्य तथा वायुकोण यानी उत्तर-पश्चिम में देवी दुर्गा की स्थापना कीजिए। सबसे पहले सूर्य की और फिर क्रम से गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

कुछ महत्वपूर्ण बातें

आजकल भिन्न-भिन्न प्रकार की धातुओं से मंदिर बनाए जाते हैं लेकिन घर में शुभता की दृष्टि से मंदिर लकड़ी, पत्थर और संगमरमर का होना चाहिए।

मंदिर इमारती लकड़ियों के बने होने चाहिए जैसे चंदन, शाल, चीड़, शीशम, सागौन आदि। पर जंगली लकड़ी से परहेज करना चाहिए जैसे नीम की लकड़ी।

मंदिर, गुम्बदाकार या पिरामिडनुमा होना शुभ माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में ऐसा लिखा गया है कि मंदिर में तीन गणपति, तीन दुर्गा, दो शिवलिंग, दो शंख, दो शालिग्राम, दो चंद्रमा, दो सूरज, द्वारिका के दो गोमती चक्र एक साथ, एक जगह पर नहीं रखने चाहिए।

ग्रह वास्तु के अनुसार, घर में पूजा के लिए डेढ़ इंच से छोटी और बारह इंच से बड़ी मूर्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बारह इंच से बड़ी मूर्ति की पूजा मंदिरों में की जाती है। घर में पीतल, अष्ठधातु की भी बड़े आकार की मूर्ति नहीं होनी चाहिए।

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

वास्तु के अनुसार घर की निम्न बातों का ध्यान रखें

वास्तु के अनुसार घर की निम्न बातों का ध्यान रखें

घर के प्रवेश द्वार पर स्वस्तिक अथवा '' की आकृति लगाने से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

समृद्धि की प्राप्ति के लिए नार्थ-ईस्ट दिशा में पानी का कलश अवश्य रखना चाहिए।

वास्तु के अनुसार रसोईघर में देवस्थान नहीं होना चाहिए।

घर में देवस्थान की दीवार से शौचालय की दीवार का संपर्क नहीं होना चाहिए।

भवन में प्रवेश करते समय सामने की तरफ शौचालय अथवा रसोईघर नहीं होना चाहिए. यदि शौचालय है तो उसका दरवाजा सदैव बन्द रखें और दरवाजे पर एक दर्पण लगा दें. यदि द्वार के सामने रसोई है तो उसके दरवाजे के बाहर अपने इष्टदेव अथवा ॐ की कोई तस्वीर लगा दें.

आपके भवन में जो जल के स्त्रोत्र हैं, जैसे नलकूप, हौज इत्यादि, तो उसके पास गमले में एक तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं.

पति-पत्नी में आपस में वैमनस्यता का एक कारण सही दिशा में शयनकक्ष का न होना भी है। अगर दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में स्थित कोने में बने कमरों में आपकी आवास व्यवस्था नहीं है तो प्रेम संबंध अच्छे के बजाए, कटुता भरे हो जाते हैं।

यद्यपि गृहस्थ जीवन में या व्याहारिक जीवन में कोई भी छोटा सा कारण एक बड़े कारण में परिवर्तित हो जाता है। चाहे वह आर्थिक हो या घर के अन्य सदस्यों को लेकर हो। इसका सीधा प्रभाव पति-पत्नी के आपसी संबंधों पर पड़ता है। इसलिए घर का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि ऋणात्मक शक्तियां कम तथा सकारात्मक शक्तियां अधिक क्रियाशील हों। यह सब वास्तु के द्वारा ही संभव हो सकता है।

घर के अंदर यदि रसोई सही दिशा में नहीं है तो ऐसी अवस्था में पति-पत्नी के विचार कभी नहीं मिलेंगे। रिश्तों में कड़वाहट दिनों-दिन बढ़ेगी। कारण अग्नि का कहीं ओर जलना। रसोई घर की सही दिशा है आग्नेय कोण। अगर आग्नेय दिशा में संभव नहीं है तो अन्य वैकल्पिक दिशाएं हैं। आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, आग्नेय एवं पूर्व के बीच, वायव्य एवं उत्तर के बीच।

घर के अंदर उत्तर-पूर्व दिशाओं के कोने के कक्ष में अगर शौचालय है तो पति-पत्नी का जीवन बड़ा अशांत रहता है। आर्थिक संकट व संतान सुख में कमी आती है। इसलिए शौचालय हटा देना ही उचित है। अगर हटाना संभव न हो तो शीशे के एक बर्तन में समुद्री नमक रखें। यह अगर सील जाए तो बदल दें। अगर यह संभव न हो तो मिट्टी के एक बर्तन में सेंधा नमक डालकर रखें |

अत: यदि हम अपने वैवाहिक जीवन को सुखद एवं समृद्ध बनाना चाहते हैं और अपेक्षा करते हैं कि जीवन के सुंदर स्वप्न को साकार कर सकें। इसके लिए पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा से वास्तु के उपायों को अपनाकर अपने जीवन में खुशहाली लाएं।

जिस घर में किचन के अंदर ही स्टोर हो, तो गृहस्वामी को अपनी नौकरी या व्यापार में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन कठिनाइयों से बचाव के लिए किचन व स्टोर रूम अलग-अलग बनाने चाहिए।

अनुभव में पाया गया है कि जिनके घरों में किचन में भोजन बनाने के साधन जैसे गैस, स्टोव, माइक्रोवेव ओवन इत्यादि एक से अधिक होते हैं, उनमें आय के साधन भी एक से अधिक होते हैं। ऐसे परिवार के सभी सदस्यों को कम से कम एक समय भोजन साथ मिलकर करना चाहिए। ऐसा करने से आपसी संबंध मजबूत होते हैं तथा साथ मिलकर रहने की भावना भी बलवती होती है ।

जिस घर में किचन मुख्य द्वार से जुड़ा हो, वहां प्रारंभ में पति-पत्नी के मध्य बहुत प्रेम रहता है घर का वातावरण भी सौहार्दपूर्ण रहता है, किन्तु कुछ समय बाद बिना कारण आपस में मतभेद पैदा होने लगते हैं।

राहु अनैतिक सम्बन्धों एवं भौतिक वादी विचार धाराओं के निर्माण कर्ता माना गया है। इसलिए काले रंग को कभी भी बैडरूम (शयनकक्ष) में नहीं कराना चाहिए। काले रंग की वस्तुऐं भी नहीं रखनी चाहिए, मधुमेह जैसी बीमारियों का जन्म इस कारण होता है।

पीला रंग बृहस्पति का होता है और शुक्र कामदेव तथा भौतिक वादी विचार धाराओं का ग्रह है। पीले रंग के द्वारा शयन कक्ष में दो वर्गों के गुरूओं का द्ववन्द है। देवताओं के गुरू वृहस्पति और राक्षसों के गुरू शुक्र देव है, इन दोनों के कारण परिवारिक सुख में बाधाएं उत्पन्न होती हैं।

शनि की दिशा पश्चिम मानी गई है। भवन के पश्चिम में बैडरूम बनवाया जाये तो शुक्र-शनि से पीड़ित रहता है। शनि कुटिल होता है और ऐसे स्थानों (भवनों) में अवैधानिक कार्य ज्यादा होते हैं।

यदि उपरोक्त नियमों का पालन किया जाये तो मनुष्य ग्रहों के आपसी झगड़ों से बच सकता है। अन्यथा समय-समय पर जिस भी ग्रह कि स्थिति गोचर में या कुन्डली में कमजोर होगी तो वह अपने रंग दिखायेगा और जब मजबूत होगी तो वह अपने रंग और अधिक दिखायेगा।